Author Archives: Shailja Kant
एक ही रास्ता…
पिछले दिनों मेरा एक पाॅच साल पुराना विडियो वायरल हुआ, जिसमें सर्वधर्म सद्भाव की बातें थीं। ‘‘अधर्म जब धर्म का लवादा ओढ़ कर आता है तो लड़ाई ओर लम्बी हो जाती है आदि -आदि’’…………इसी क्रम में मैंने बात समझाने के लिये दीपावली में पटाखे, जुए, शराब की विभीषिका और सती-प्रथा का भी उल्लेख किया था।
मेरे कुछ दोस्तों को एतराज़ है कि मैंने कुरीतियों के उदाहरण देने में हिंदू धर्म को ही क्यों इंगित किया, क्या अन्य धर्मों से जुड़ी कुरीतियां नहीं हैं? कुछ अति उत्साही जानकार मित्रों ने लंबी सूची भेजी, इस बाबत नाराज़गी और उलाहने के साथ कि आलोचना में भी समता होनी आवश्यक है, वरना धर्मनिरपेक्षता कैसी?
ऐसे में मैं सफाई देने को मजबूर हूॅ।
बात बहुत सहज है क्योंकि जब भी मैं आगे देखने की कोशिश करता हूँ तो मुझे सिर्फ दो रास्ते दिखाई देते हैं। एक तो हम इस दुनिया को तबाही की ओर ले जायें, अपनी नासमझी और धार्मिक उन्माद की झोंक में, या फिर समझदारी और सहिष्णुता से इसे बेहतर बनाने की कोशिश करें – अपने और आने वाली पीढ़ियों के लिये।
पहला रास्ता तो मुझे रास्ता ही नहीं लगता, सो बचा इकलौता ‘दूसरा’ रास्ता ;
*हमें समझदारी से चीजें सॅभालने की कोशिश करनी ही होगी।*
यदि व्यवस्था सॅवारनी है तो शुरूआत अपने आप से, अपने घर-परिवार और अपनों से करनी होगी। जहाॅ हम पैदा हुये जिनके बीच हम पले-बढ़े, बाक़ी ज़िंदगी गुज़ारी और जिनके बीच हम एक दिन अपनी आखिरी साॅस लेंगें, अगर उन तक ही ये बात नहीं पहुॅच रही है, तब तो बात शुरू ही नहीं हुई और फिर इस समाधान के आगे जाने का सवाल ही नहीं उठता।
औरों की कमियाॅ निकालना बहुत आसान है और शायद सुखद भी। पर जब हर इंसान औरों को ठीक करने की चाहत में छिद्रान्वेषण या आलोचना में जुट जाता है तो नतीजा होता है – नफ़रत उगलती हुई ज़ुबान, दिलों-दिमाग में ज़हर, और उठी हुई ऊॅगलियाॅ।
इन उठी ऊॅगलियों में कब हथियार आ जाते हैं, हमें पता नहीं चलता। हथियारों की कोई जाति, धर्म, विचारधारा नहीं होती। फ्रांस में जिस गिलटीन ने चोरों, डकैतों और हत्यारों का गला काटा, उसी गिलटीन ने कितने कवियों, दार्शनिकों और यहाॅ तक कि अपनी रानी का सिर भी उतनी ही सफाई से धड़ से अलग कर दिया था, क्रांति के दौरान।
अपनी 35 साल की पुलिस की नौकरी में मैंने इस नफ़रत और हिंसा के कारण होने वाले तबाही के मंज़र कई बार नजदीक से देखे हैं। इन तबाहियों से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। वैसे भी इनसे न ‘ *हम* ’ सुधरने वाले हैं और न ही ‘ *वो* ’।
काश हमें इस बात का एहसास हो जाये कि ‘ *हम* ’ और ‘ *वो* ’ एक ही परमात्मा या परवरदिगार का सृजन हैं। हर धर्म एक ही बात दोहराता है-
१: *‘‘आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत्’’*
अर्थात् जो हम अपने लिये नहीं चाहते, उसे दूसरों के लिये न करें.
(पद्मपुराण)
२: ” Do unto others what you would have them do to you.” (Mathew : 7:12)
३: “ None of you will (truly) believe until you love for your brother what you love for yourself. (Prophet Mohammad)
कुरान शरीफ का “हुक़ूक़-उल-इबाद ” भी क़मोबेश यही बयान करता है।
एक रेशे भर का भी तो फ़र्क़ नहीं है, इन उपदेशों के बीच।
मतलब एकदम साफ है कि सभी धर्मों के उपदेशों में, *उस एक’* ऊपरवाले की सारी सिखलाई भी *‘एक’* ही है, ज़ुबान और किताबें चाहें अलग-अलग हों।
पता नहीं कब तक हम उलझे रहेंगें , ‘अपने’ लफ़्ज़ों के इन बेमक़सद लफड़ों में …
All religions have the same core
कैन्सर की औषधि,श्री देवराहा बाबा द्वारा बतायी गयी:
कैन्सर की औषधि,श्री देवराहा बाबा द्वारा बतायी गयी:
( मेरे अनेक परिजन इससे लाभान्वित हुए हैं)
१: गाय( यथासंभव देसी गाय जिसके पीठ में डील होता है) के २०० ग्राम दूध का दही जमा कर उसे मथ लिया जाए- न पानी न नमक न चीनी मिलाया जाए.
२: ३५ तुलसी की पत्तियाँ ( वैद्य वाले नए खलहड में) पीस कर मट्ठे में मिला कर दिन में एक बार पिला दें.
३: तुलसी की पत्तियाँ दिन में तोड़ी जायें अर्थात सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले तथा द्वादशी को न तोड़ी जाएँ.
४: एकादशी के दिन ७० तुलसी की पत्तियाँ तोड़ कर उनमें से ३५ गीले कपड़े में लपेट कर फ़्रिज में रख लीं जायें जिनका उपयोग द्वादशी को किया जाए.
Key Learnings -Ram Charit Manas
Narmada Parikrama -An Untold Story
कहने को यह आज़ादी का ७० वाँ साल , धर्मप्राण देश,माँ नर्मदा के तटीय क्षेत्र के निवासियों का विलक्षण भक्तिभाव ,पैदल और मोटर से पता नहीं कितने धर्मभीरु लोग इस यात्रा मैं रत और विमलेश्वर से मीठीतलाई तक की इस समुद्री यात्रा की ऐसी अभूतपूर्व दुर्व्यवस्था !!
गिद्ध का बच्चा
एक गिद्ध का बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता था। एक दिन गिद्ध का बच्चा अपने पिता से बोला- “पिताजी, मुझे भूख लगी है।” “ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर। मैं अभी भोजन लेकर आता हूूं।” कहते हुए गिद्ध उड़ने को उद्धत होने लगा। तभी उसके बच्चे ने उसे टोक दिया, “रूकिए पिताजी, आज मेरा मन इन्सान का गोश्त खाने का कर रहा है।” “ठीक है, मैं देखता हूं।” कहते हुए गिद्ध ने चोंच से अपने पुत्र का सिर सहलाया और बस्ती की ओर उड़ गया।
बस्ती के पास पहुंच कर गिद्ध काफी देर तक इधर-उधर मंडराता रहा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। थक-हार का वह सुअर का गोश्त लेकर अपने घोंसले में पहुंचा। उसे देख कर गिद्ध का बच्चा बोला, “पिताजी, मैं तो आपसे इन्सान का गोश्त लाने को कहा था, और आप तो सुअर का गोश्त ले आए?” पुत्र की बात सुनकर गिद्ध झेंप गया। वह बोला, “ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर।”
कहते हुए गिद्ध पुन: उड़ गया। उसने इधर-उधर बहुत खोजा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। अपने घोंसले की ओर लौटते समय उसकी नजर एक मरी हुई गाय पर पड़ी। उसने अपनी पैनी चोंच से गाय के मांस का एक टुकड़ा तोड़ा और उसे लेकर घोंसले पर जा पहुंचा। यह देखकर गिद्ध का बच्च एकदम से बिगड़ उठा, “पिताजी, ये तो गाय का गोश्त है। मुझे तो इन्सान का गोश्त खाना है। क्या आप मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?”
यह सुनकर गिद्ध बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने मन ही मन एक योजना बनाई और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकल पड़ा। गिद्ध ने सुअर के गोश्त एक बड़ा सा टुकड़ा उठाया और उसे मस्जिद की बाउंड्रीवाल के अंदर डाल दिया। उसके बाद उसने गाय का गोश्त उठाया और उसे मंदिर के पास फेंक दिया। मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों ने अपना काम किया और देखते ही पूरे शहर में आग लग गयी। रात होते-होते चारों ओर इंसानों की लाशें बिछ गयी।
यह देखकर गिद्ध बहुत प्रसन्न हुआ। उसने एक इन्सान के शरीर से गोश्त का बड़ा का टुकड़ा काटा और उसे लेकर अपने घोंसले में जा पहुंचा। यह देखकर गिद्ध का पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ। वह बोला, “पापा ये कैसे हुआ? इन्सानों का इतना ढेर सारा गोश्त आपको कहां से मिला?”
गिद्ध बोला, “बेटा ये इन्सान कहने को तो खुद को बुद्धि के मामले में सबसे श्रेष्ठ समझता है, पर जरा-जरा सी बात पर ‘जानवर’ से भी बदतर बन जाता है और बिना सोचे-समझे मरने- मारने पर उतारू हो जाता है। इन्सानों के वेश में बैठे हुए अनेक गिद्ध ये काम सदियों से कर रहे हैं। मैंने उसी का लाभ उठाया और इन्सान को जानवर के गोश्त से जानवर से भी बद्तर बना दियाा।”
साथियो, क्या हमारे बीच बैठे हुए गिद्ध हमें कब तक अपनी उंगली पर नचाते रहेंगे? और कब तक हम जरा-जरा सी बात पर अपनी इन्सानियत भूल कर मानवता का खून बहाते रहेंगे? अगर आपको यह कहानी सोचने के लिए विवश कर दे, तो प्लीज़ इसे दूसरों तक भी पहुंचाए। क्या पता आपका यह छोटा सा प्रयास इंसानों के बीच छिपे हुए किसी गिद्ध को इन्सान बनाने का कारण बन जाए।